आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
|
10 पाठकों को प्रिय 18 पाठक हैं |
अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
इस संसार में भौतिकवादी रहते हैं और आध्यात्मिक व्यक्ति भी। आकार-प्रकार में उनमें कोई विशेष अंतर नहीं होता, दोनों ही सामान्यतया, समान रूप से खाते-पीते, सोते-जागते और काम-काज करते हैं। शारीरिक बनावट और मानवीय वृत्तियों में भी कोई विशेष अंतर नहीं होता। दोनों ही गृहस्थ बसाते हैं। दोनों साधारणतः एक जैसी परिस्थितियों में रहते और व्यवहार करते हैं। विपत्ति, संपत्ति, सुख-दुःख और उत्थान-पतन का काल-चक्र दोनों को छूकर गुजरता है। दोनों के सामने हँसने और रोने के अवसर आते हैं और वे हँसते भी हैं और रोते भी हैं। साधारण रूप से देखने पर भौतिक तथा आध्यात्मिक व्यक्तियों में कोई अंतर दिखाई नहीं देता। दोनों प्रकार के व्यक्ति एक जैसा दीखते और व्यवहार करते दृष्टिगोचर होते हैं, तथापि उनमें वस्तुतः आकाश-पाताल का अंतर होता है।
भौतिक और आध्यात्मिक व्यक्ति बाह्य आकार-प्रकार में मनुष्य ही होते हैं और साधारण दृष्टि से उनके बीच कोई अंतर नहीं होता। उनके बीच जो मूल अंतर होता है, वह होता है-आचार-विचार और जीवन के प्रति दृष्टिकोण का। भौतिक लोभ और वितृष्णाओं से अभिभूत व्यक्ति अधिकतावादी और आध्यात्मिक व्यक्ति संतोष-धनी होने से 'उत्कृष्टतावादी' होते हैं। जिसे अपने विषय में यह निश्चित करना हो कि वह वस्तुतः आध्यात्मिक व्यक्ति है अथवा भौतिक व्यक्ति, वह अपने आचार-विचार का तटस्थ होकर निरीक्षण करे और पता लगाये कि उसकी वृत्ति अधिकता की ओर जाती है अथवा उत्कृष्टता की ओर। यदि उसकी वृत्ति अधिकता की ओर जाती है तो उसे निःसंकोच भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए कि वह भौतिक व्यक्ति है और यदि वह पाये कि उसकी अभिरुचि अधिकता में न होकर उत्कृष्टता में है, तो उसे आश्वस्त होकर परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए कि वह आध्यात्मिक वृत्ति का मनुष्य है। उसे अधिकार है कि वह अपने पर प्रसन्न हो और विश्वास कर ले कि उसका भविष्य उज्ज्वल है।
सामान्यतः लोग आस्तिक होते हैं और बहुत बार कुछ न कुछ भजन-पूजन और उपासना-अनुष्ठान भी करते रहते हैं। यह बातें बहुत कुछ इस बात की सिफारिश करती हैं कि ऐसे लोग अपने को आध्यात्मिक व्यक्ति मान लें। लेकिन यह मान लेने में भय न करना चाहिये कि मनुष्य की यह क्रियायें ही आध्यात्मिकता का प्रमाण नहीं हैं। आध्यात्मिकता वास्तव में वह आत्म-गौरव, आत्म-संतोष और आत्म-शांति है, जो किन्हीं भी कार्य-व्यवहारों में उत्कृष्टता के समावेश से उत्पन्न होता है। यदि सच्ची भावना से विरत रहकर चार-चार घंटे भजन-पूजन किया जाए, अनेक यज्ञ-अनुष्ठानों का आयोजन किया जाए, धर्म-कर्मों की झड़ी लगा दी जाए तो भी आध्यात्मिक उपलब्धि का प्रयोजन पूरा नहीं हो सकता और न ऐसा अन्यमनस्क धार्मिक व्यक्ति आध्यात्मिक ही माना जा सकता है।
|
- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न